पशमीना शाल क्यों होती है इतनी खास – एक शाल की किंमत 4 लाख रुपये
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What is so special about Pashmina shawl
इस वक्त Sony SAB TV पर पशमीना धारावाहिक चल रहा है , जो काफी लोकप्रिय हो रहा है। इस के चलते लोगों में पशमीना शाल के बारे में जानने की इंतेज़ारी भी बढ़ गई है। कश्मीर की पश्मीना शाल इतनी अद्भुत इस लिए होती है , क्योंकि इसे बनाने में तकरीबन एक साल का समय लग जाता है। दो लोग मिलकर एक साल में एक पशमीना शाल बना पाते हैं । यह इतनी नाजुक होती है की पूरी शाल का वजन महज 50 से 60 ग्राम होता है। इस की लंबाई आम तौर पर पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग अलग होती है। सामान्य रूप से पुरुषों की शाल की साइज़ 36 x 80 inches होती है। महिलाओं की शाल की साइज़ 24 x 60 inches होती है। यह इतनी पतली होती है की इसे आप एक छोटी से अंगूठी में से निकाल सकते हैं। लेह-लद्दाख के याक ऊन से बने लांग कोट और कुल्लू डिजाइन में हिमाचल प्रदेश के जैकेट, स्टाल और मफलर भी आकर्षण का केंद्र होते हैं।मध्य प्रदेश हस्तशिल्प और हाथकरघा विकास निगम द्वारा कपड़ा मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से आयोजित 11 दिवसीय नेशनल हैंडलूम एक्सपो में देश के 12 राज्यों के लगभग 117 बुनकर अपने हैंडलूम उत्पादों का प्रदर्शन कर रहे हैं। श्रीनगर के रहने वाले कारीगर इस प्रदर्शनी में कानी, कलमकारी और सुजानी डिजाइनों में पश्मीना शाल की श्रृंखला लाए हैं। इनकी कीमत 18 हजार रुपये से लेकर चार लाख रुपये तक है। पुरुषों की एक शाल को दो बुनकर मिलकर लगभग एक वर्ष में तैयार कर पाते हैं। एक कानी पश्मीना शाल तैयार करने का लेबर चार्ज एक से डेढ़ लाख रुपये आता है, जबकि लेडीज शाल के लिए यह 65 से 80 हजार रुपये है। इसीलिए पुरुषाें की शाल ज्यादा महंगी होती है। अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करने वाले खान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हमेशा कानी में पश्मीना शाल पहनते हैं और फिल्म अभिनेता शर्मिला टैगोर और सैफ अली खान पश्मीना के ब्रांड एंबेसडर हैं। पश्मीना कारीगरी सात सौ साल पहले ईरान से भारत में आई थी।
शहतूश और पशमीना शाल में क्या अंतर होता है ?
What are Shahtoosh and Pashmina ? What is the difference between Shahtoosh shawl and Pashmina shawl ?
शाहतूश तिब्बती चिरू मृगों ( Tibetan chiru antelopes ) के ऊन को दिया गया नाम है। इस लुप्तप्राय प्रजाति के सदस्यों को उनके छोटे, महीन ऊन के लिए फँसाया जाता है, मार दिया जाता है और उनकी खाल उतार दी जाती है। ज्यादातर देशों में शहतूश शॉल अवैध हैं।
जब की पश्मीना उन तिब्बती पहाड़ी बकरियों से प्राप्त होता है। जबकि पशमीना के निर्माताओं का दावा है कि जानवरों को नहीं मारा जाता है, तिब्बती पहाड़ी बकरियों को, जिन्हें उनके ऊन के लिए पाला जाता है, लगातार शोषण किया जाता है और अंततः मार दिया जाता है। इस लिए पशमीना शाल भी कई देशों में प्रतिबंधित है।
वास्तव में पशमीना शाल नहीं परंतु शहतूश प्रकार की शाल को अंगूठी से निकाल जा सकता है।
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